महर्षि दयानंद सरस्वती का मूल नाम मूलशंकर था। उनका जन्म एक समृद्ध परिवार में हुआ था। छोटी उम्र से ही, मूलशंकर का मन धार्मिक और दार्शनिक प्रश्नों से घिरा रहता था। एक बार, शिवरात्रि के दिन, उन्होंने देखा कि एक चूहा शिवलिंग पर चढ़कर प्रसाद खा रहा है। इस घटना ने उनके मन में मूर्ति पूजा के प्रति संदेह पैदा कर दिया। उन्हें लगा कि यदि एक पत्थर की मूर्ति स्वयं को चूहों से नहीं बचा सकती, तो वह किसी और की रक्षा कैसे करेगी?
इस घटना ने मूलशंकर को सत्य की खोज में निकलने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने 21 वर्ष की आयु में अपना घर त्याग दिया और एक तपस्वी जीवन जीने लगे। उन्होंने विभिन्न गुरुओं से ज्ञान प्राप्त किया और वेदों का गहन अध्ययन किया। उनकी सत्य की खोज उन्हें अंततः उनके गुरु स्वामी विरजानंद के पास ले गई, जिन्होंने उन्हें वैदिक ज्ञान का सही मार्ग दिखाया।
* महर्षि दयानंद सरस्वती 19वीं सदी के महान समाज सुधारक, दार्शनिक और आर्य समाज के संस्थापक थे।
* उनका जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के टंकारा में हुआ था।
* उनका मूल नाम मूलशंकर था।
* उन्होंने वेदों के प्रचार-प्रसार और समाज सुधार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
* उन्होंने ‘वेदों की ओर लौटो’ का नारा दिया और समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे जातिवाद, छुआछूत और बाल विवाह का विरोध किया।
* उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों के लिए भी महत्वपूर्ण कार्य किए।
* उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘सत्यार्थ प्रकाश’ शामिल है, जो उनके विचारों और दर्शन का सार है।
दयानंद सरस्वती जयंती का महत्व
* दयानंद सरस्वती जयंती हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को मनाई जाती है।
* यह दिन उनके जीवन और शिक्षाओं को याद करने और उनके आदर्शों को अपनाने का अवसर है।
* आर्य समाज के अनुयायी इस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित करते हैं, जिनमें वैदिक मंत्रोच्चारण, हवन और प्रवचन शामिल होते हैं।
* यह दिन समाज सुधार और राष्ट्रीय चेतना के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को श्रद्धांजलि देने का भी अवसर है।
दयानंद सरस्वती के प्रमुख योगदान
* आर्य समाज की स्थापना: उन्होंने 1875 में आर्य समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य वैदिक धर्म को पुनर्जीवित करना और समाज सुधार करना था।
* वेदों का प्रचार: उन्होंने वेदों को ज्ञान का स्रोत माना और उनके प्रचार-प्रसार के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए।
* समाज सुधार: उन्होंने जातिवाद, छुआछूत, बाल विवाह और सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया।
* शिक्षा: उन्होंने शिक्षा के महत्व पर जोर दिया और गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा दिया।
* राष्ट्रीय चेतना: उन्होंने स्वदेशी और स्वराज के विचारों को बढ़ावा दिया, जिससे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरणा मिली।
महर्षि दयानंद सरस्वती का निधन
* 30 अक्टूबर 1883 को दीपावली के दिन उनका निधन हुआ था।
महर्षि दयानंद सरस्वती एक महान सुधारक थे, जिन्होंने भारतीय समाज को नई दिशा दी। उनके विचार और शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और हमें एक बेहतर समाज बनाने के लिए प्रेरित करती हैं।